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केदारनाथ उपचुनाव: हारकर भी जीतने वाले को बाजीगर नहीं बल्कि त्रिभुवन चौहान कहते हैं

90 हजार से अधिक मतदाता वाली केदारनाथ विधानसभा की जनता ने शनिवार को अपना जनादेश दिया। जनता ने भाजपा प्रत्याशी आशा नौटियाल को अपना विधायक चुना है। इसी के साथ केदारनाथ विधानसभा में महिला प्रत्याशी की जीत का मिथक भी भाजपा ने दोहराया। उपचुनाव के दौरान मुख्य मुकाबले में भाजपा व कांग्रेस ही दिखते रहे। शनिवार को सुबह आठ बजे मतगणना शुरू हुई। शुरुआत से ही भाजपा ने बढ़त बरकरार रखी। दोपहर साढ़े 12 बजे जीत का ताज आशा नौटियाल के सिर पर सज गया। लेकिन इन सबके बीच जिस तरह से निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान ने 9000 से अधिक मत प्राप्त किये हैं उसने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा है.

उत्तराखंड के केदारनाथ उपचुनाव ने भारतीय राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ लाया, जिसमें हारकर भी चर्चा में रहने वाले उम्मीदवार त्रिभुवन चौहान बने। निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान, जो इस चुनाव में बीजेपी की आशा नौटियाल से हार गए, लेकिन उनकी रणनीति, जुझारूपन और मेहनत ने उन्हें एक मजबूत राजनीतिक चेहरा बना दिया है। त्रिभुवन चौहान ने इस चुनाव में जमीनी स्तर पर जो मेहनत की, वह केवल जीत-हार तक सीमित नहीं थी। उन्होंने मुद्दों को उठाया, क्षेत्र की समस्याओं को जनता के सामने रखा और एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाई। हालांकि परिणाम उनके पक्ष में नहीं आए, लेकिन उनकी लोकप्रियता और कड़ी मेहनत ने उन्हें हारकर भी विजेता बना दिया है।

“बाजीगर” शब्द केवल फिल्मों तक सीमित नहीं है; राजनीति में भी यह उदाहरण देखने को मिलता है। त्रिभुवन चौहान ने दिखा दिया कि हार के बाद भी आप अपनी मेहनत, विचारधारा और कार्यशैली से जीत सकते हैं। आज केदारनाथ में उनकी हार पर चर्चा कम, लेकिन उनकी छवि और संघर्ष पर चर्चा ज्यादा है। यह घटना साबित करती है कि राजनीति में केवल चुनावी परिणाम ही मायने नहीं रखते, बल्कि जनता के दिलों में जगह बनाना असली जीत होती है।

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